kanchan singla

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मैं नहीं जानती....!!

मैं क्या थी क्या हूं और क्या हो गई हूं
मैं जो थी वहीं हूं, वही रहूंगी
लोगो के इतने बदलते रंग देखे है
लगने लगा है जैसे मैं बदल गई हूं....
शायद मैं बदल गई हूं या बदल रही हूं।
मैं नहीं जानती....!!

मैं बदल रही हूं या मैं समझ रहीं हूं
जो जैसा है उसे उसकी भाषा में जवाब दे रही हूं
दुनियां की रीत को धीरे-धीरे अपना रही हूं
छल को छल से और प्रेम को प्रेम से अपना रही हूं
शायद मैं बदल गई हूं या बदल रही हूं
मैं नहीं जानती....!!

चाय की हरी पत्तियां भी उबलने पर काला रंग छोड़ती हैं
कुछ इसी तरह कुछ लोग भी रंग बदलते हैं
उन्हीं रंगो को पहचाननें की कोशिश कर रही हूं
सफेद और काले रंग से हटकर
अन्य रंगो को भी पहचान रही हूं
शायद मैं बदल गई हूं या बदल रही हूं
मैं नहीं जानती....!!

लेखिका - कंचन सिंगला ©®

लेखनी प्रतियोगिता -15-Jul-2022

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4 Comments

नंदिता राय

16-Jul-2022 09:53 PM

शानदार

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Punam verma

16-Jul-2022 03:59 PM

Nice

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Abhinav ji

16-Jul-2022 09:31 AM

Nice👍

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